लेखनी प्रतियोगिता -11-Nov-2022... छोटी सी बात..
अरे जल्दी करो.... ओर कितनी देर लगेगी तुम्हें...।
बस आ रहीं हूँ...।
तुम औरतें भी ना पता नहीं ऐसा तो क्या करतीं हो.. हमेशा तुम लोगो की वजह से हर जगह देर हो जाती हैं...। दो बार भाईसाहब का फोन आ चुका हैं...।
अच्छा जी.... हमारी वजह से... देर होतीं हैं...। आप जेन्ट्स का सही हैं... ऐन वक्त पर मेरी घड़ी... मेरा कंगन... मेरे जुराब.... मेरा बेल्ट...आप करो... एक एक चीज हाथ में दो... उसके बाद हम पांच मिनट तैयार क्या होने गए.... देर हो जाती हैं...।
तुम औरतों से कोई जीत पाया हैं...। अब वो सब छोड़ो... चलो... जल्दी...। मिठाई ले ली...?
हां जी... ले ली.... मिठाई भी ओर उपहार भी...। अब चलिए...।
मैं और मेरी श्रीमती हर बार की तरह मिठ्ठी नोकझोंक के बाद आखिर कार अपने गंतव्य पर चल दिए...। मेरे बड़े भाई ने नया घर लिया था आज उसी का हवन रखवाया था...। मैं और बड़े भाई का परिवार अलग अलग रहते थे..। बच्चों के बड़े होने के बाद उनके बीच किसी तरह का वादविवाद ना हो इसलिए मम्मी पापा की मृत्यु के बाद ही हमने आपसी रजामंदी से बंटवारा कर लिया था..। बड़े भाई ने घर रखा तो मैंने पापा की दुकान...। बड़े भाई का बेटा विदेश गया था नौकरी के लिए.. सालों तक परिवार से दूर रहकर आखिर कार उसने इतना धन कमा लिया था की नया घर ले सकें..। मैं और मेरी श्रीमती अभी भी किराए के घर में रहते थे...। दोनों बच्चों की पढ़ाई लिखाई की वजह से खर्च इतना हो जाता हैं की मकान का तो सोच भी नहीं सकते...। लेकिन बड़े भाई के लिए मैं दिल से बहुत खुश था..। खुश होते हुवे हम दोनों बाईक से बड़े भाई के घर जा रहे थे.. बच्चे तो कल रात से वही रहें हुवे थे..।
कुछ ही देर में हम भी वहाँ पहुंचे..। हवन की सारी तैयारियां हो चुकी थीं... । थोड़ी देर की मुलाकात और बातचीत के बाद पंडित जी ने हवन शुरू किया...। भाई और भाभी दोनों को एक तरफ बिठाया गया...। उनके आगे हवन सामग्री से भरी हुई एक थाली और शुद्ध घी से भरा हुआ एक कटोरा रखा गया....।
वहाँ चल रहें हवन ने मुझे कुछ सोचने पर विवश किया...।
मैने देखा पंडित जी के स्वाहा कहने पर भाई और भाभी हवन कुंड में अपनी उंगलियों से थोड़ी थोड़ी हवन सामग्री डाल रहें थे...। हर बार स्वाहा के आह्वान पर थोड़ी थोड़ी सामग्री डालना निरंतर चल रहा था..। बीच बीच में चम्मच से थोड़ा घी भी कुंड में डाला जा रहा था...। फिर कुछ देर बाद घर परिवार और सभी रिश्तेदारों को भी वही क्रम दोहराने को कहा गया... सभी बारी बारी से आते ओर थोड़ी थोड़ी सामग्री हवन कुंड में डालते...। हर कोई एकदम थोड़ी थोड़ी सामग्री डाल रहा था सिर्फ इसलिए की मंत्रोच्चारण के दौरान सामग्री कम ना पड़ जाए.... घी समाप्त ना हो जाए...।
अंत होतें होते मैने देखा की थाली में अभी भी बहुत सारी सामग्री बची हुई थीं और घी भी कटोरे में था...। आखिर में पंडित जी ने सारी बची हुई सामग्री और घी एक साथ हवन कुंड में डालने को कहा...। भाई ने सारी सामग्री एक साथ हवन कुंड में डाल दी...। ऐसा करने से पूरा कमरा धुआं धुआं हो गया..। वहाँ बैठे सभी लोगों का अब वहाँ बैठना भी मुश्किल हो गया था... इसलिए एक एक कर सभी बाहर बरामदे में बाहर हवा में चल दिए... ।
देखा जाए तो असल में हम सब अपनी जिंदगी में ऐसा ही तो कर रहें हैं...। भविष्य के लिए जमा करते जाते हैं.. बाद में काम आएगा.. इसलिए संभालते जा रहे हैं... लेकिन हम ये भूल जाते हैं की अंत में तो सब स्वाहा ही होना हैं...। बात बहुत छोटी हैं लेकिन जो समझें उनके लिए बहुत गहरी भी हैं..। सोचिये... विचार किजिए... की आखिर इस घटना से इस वृतांत से आप क्या समझें...??
Gunjan Kamal
17-Nov-2022 02:20 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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Rafael Swann
14-Nov-2022 11:50 PM
Umda 👏🌸
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Arman
12-Nov-2022 10:00 AM
ये ही की कल की फिक्र में अपने एझ के अनमोल पालो को न गवाए खुशी छोटी हो या बड़ी खुल का उसका स्वागत करें कल किसने देखा है जब है इस पल है अपील पल क्या होहमरे साथ ये कोई नही जानता छोटी बात नही ये तो बहुत बड़ी शिक्षा है हम सब के लिए
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